________________
(९०)
बैठते हैं । थोड़े ही दिनकी बात है कि किसीने नये मजहवीं जोशमें आकर जैनमतमें मिथ्या आरोप किये और अन्तमें हानि उठाई । मैं आपको कहाँ तक कहूँ बडे २ नामी आचार्योंने अपने ग्रन्थोमें जो जैनमतखण्डन किया है वह ऐसा किया है कि जिसे सुन देख कर हँसी आती है।
मैं आपके संमुख आगे चल कर स्याद्वादका रहस्य कहूंगा, तब आप अवश्य जान जाँयगे कि वह एक अभेद किल्ला है, उसके अंदर मायामय गोले नहीं प्रवेश कर शकते । परंतु साथही खेदके साथ कहा जाता है कि अब जैनमतका बुढ़ापा आगया है, अब इस्मे–इने गिने साधु, गृहस्थ, विद्यावान् रह गये हैं। जैसे कि साधुवर्य परमोदासीनस्वभाव, आत्मविज्ञानपरायण, ज्ञानविज्ञानसंपन्न श्रीधर्मविजयजी साधुसंप्रदायमें हैं, और -गृहस्थोंमें तो विद्वानोंकी संख्या और भी कम है, जहाँ तक मुझे यादगारी और जानकारी है-पण्डितशिरोमणि पन्नालालजी न्यायदिवाकर, इस मतके अच्छे जानकार हैं और उनके कारण जैनसंप्रदायकी बड़ी प्रतिष्ठा है और नाम है । और नवीन गृहस्थमण्डलीमें होनहार और जैनसंप्रदायको लाभ पहुंचाने की योग्यतावाले-खुरजाके सेठ मेवाराम जी हैं, वे शास्त्रानु
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org