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लिखित प्रतिओ उपरथी एक स्वतंत्र मूळ तैयार करी लीधुं हतुं के जे मने मुद्रितमूळ साथे मेळवी जोवामां त्रणं उपयोगी यई पडयुं छे.
उत्तराध्ययन सूत्रनी कलकत्तावाळी आवृत्ति ( संवत् १९३६ ई. १८७९ ) मां गुजराती विवरण उपरांत खरतरगच्छीय लक्ष्मीकीर्तिगणिना शिष्य लक्ष्मीवल्लभनी रचेली सूत्रदीपिका आपेली छे. आ टीकाथी वधारे प्राचीन देवेन्द्रनी टीका छे अने तेज टीका उपर में मुख्य आधार राख्यो छे. ए टीका सं. ११७९ एटले ई. स. ११२३ मां रचाई छे अने ते प्रकटरीते शान्त्याचार्यनी बृहद्वृत्तिना सारांशरूपे छे. शांत्याचार्यवाळी वृत्ति में वापरी नथी. मारी पासे स्ट्रेस्सबर्ग युनिवर्सिटी लाइब्रेरीनी मालिकीनी अवचूरिनी पण एक सुंदर प्राचीन हस्तलिखित प्रति छे. आ ग्रंथ पण +पष्टरीते शान्त्याचार्यनी वृत्तिनो संक्षेप मात्र छे. कारणके लगभग ए तेने अक्षरशः मळतो आवतो जणाय छे.
सूत्रकृतांगनी मुंबईवाळी आवृत्ति (सं. १९३६, ई. स. १८८०) मां त्रण टीकाओ आपेली छे. ( १ ) शीलांकनी टीका, जेमां भद्रबाहुनी निर्युक्ति पण आवेली छे. आ टीका सर्वे विद्यमानटीका ओमां सौथी प्राचीन छे. परन्तु आना पहेला पण बीजी टीकाओ एली हती. कारणके शीलांक केटलेक स्थळे प्राचीनंटीकाकारोनो उल्लेख करे छे.
शीलांक नवमी शताब्दिना
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