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प्रकारनो विकार थवा पाम्यो नथी, ए निर्विवाद सिद्ध छे. ते केवल सर्वज्ञ पुरुषोनी वाणीनीज खुबी छे.
वर्तमानकाळमां मध्यस्थ देशी तेमज परदेशी जैनधर्मना अभ्यासीओ, जनोना सुनिश्चित सत्य तत्त्वोने एकी अवाजे स्वीकारे छे, ते आ नवा जमानामां लोकोने आश्चर्य कर्या शिवाय रहेशे नहीं.
कारण पूर्वकालमां वैदिकधर्मी तथा ब्राह्मणधर्मी अनेक आग्रही पण्डितोना तरफथी जैनधर्मना मूलतत्वो उपर जूठा अने तद्दन अविचारित आक्षेपो सिवाय योग्य न्याय मळ्यो न होतो, तेमांनो एकज आक्षेप आ प्रसंगे टांकी बता, तो भारी पडतो नहीं गणाय. जुओ के-ब्रह्मसूत्रना प्रणेता वेदव्यास महर्षि "नैकस्मिन्नसंभवात् " आ सूत्रमा जैनधर्मनुं खंडन बीजरूपे लखी गएला, पछी तेना भाष्यकार अवतारिक अने सर्वज्ञ बिरुदना धारक श्री आद्यशंकरस्वामीजी जैनोना स्याद्वदन्यायर्नु विस्तारथी खण्डन करेलं, पण ते योग्य करेलु नथी, जुओ महामहोपाध्याय पं० गंगनाथ एम. ए. डी. एल. एल. इलाहाबादवाळा लखे छे के- जबसे मैंने शकराचार्यद्वारा जैनसिद्धांत पर
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