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(५५) होवायी कोई पण पदार्थनो वास्तविक नाश थतो नथी. मारे कहेवू जोईए के सुख अने दुःखने नित्य मानवा छतां पण ते बन्नेनी आत्मा उपर कोई असर थती न मानवी ते मारा अभिप्राय प्रमाणे तो अज्ञानता भरेलं छे. परन्तु बौद्धोए कदाच असल सिद्धांतोनुं असत्य आलेखन कर्यु होय तो ते पण संभवित छे. पकुधकच्चायनना विचारो अवश्य करीने अक्रियावादमा अंतर्गत थाय छे. अने आ बाबतमां ते वैशेषिकदर्शन के जे क्रियावादी छे तेनाथी भिन्न पडे छे. आ बन्ने वादो बौद्ध तेमन जैमसाहित्यमा आवता होवाथी तेमनी विशेष व्याख्या करवी अहीं अस्थाने नहीं गणाय.जे सिद्धांत आत्माने क्रियाशील अने क्रियालिप्त (क्रियाथी जेना उपर असर थाय तेवो) माने छे ते क्रियावादी कहेवाय छे. आवर्गमां जैनधर्म, ब्राह्मणधर्मो पैकी वैशेषिक अने न्या-: यदर्शनो (आ बे दर्शनोना स्पष्ट उल्लेखो बौद्ध अने जैनधर्मशास्त्रोमां थएला नथी.) तथा बीजां पण एवां केटलांक दर्शनों के जेनां नाम अत्यारे उपलब्ध थई शकतां नथी परन्तु जेनी हयातीनी माहिती आपणे आपणा आ ग्रंथोमांथी मेळवी शकीए छीए, ते. सर्वेनो-समावेश थाय छे. अक्रियावाद ते सिद्धान्त कहेवाय छे, जेमां आत्मानुं नास्तित्व अगर निष्क्रियत्व अथवा कर्मालिप्तत्व प्रतिपादन करवामां आवे छे. आ वर्गमां सघळा जडवादी मतो;
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