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चारो फरता जाय छे तेम प्राचीनकालमां पण घगा पंडितोना विचारो फरेला छे. तेनुं कारण जैनोना पूर्वाऽपर विरोधरहित अगाध तत्त्वोनीज खुबी छे. जुवो के सिद्धसेनमूरि, धनपाल पंडित, हरिभद्रसरि ए त्रणे ब्राह्मण पंडितोज हता. जैनधर्मना तत्त्वोने समज्या पछी जेवी रीते आ आधुनिक पंडितोए पोताना अभिप्रायो प्रगट कर्या छे तेवी रीते ते पंडितो पण एज कही गया छे के-हे वीतराग भगवान् जे जे उत्तम तत्त्वो बीजा मतवालाओमा देखाय छे, ते ते जैनधर्मना तत्त्वसमुद्रमांथी निकलीने बहार पडेला बिंदुरूपेज देखाय छे. एम निश्चय पूर्वक सिद्ध छ ।
९ पृ.१२२ थी-हेमचंद्रसूरिजीना लेखनो सार--एमणे वीतरागनी स्तुति करतां कयूं छे के-हे भगवन्! वेद वेदालना मतवालानां शास्त्रो एकांतपक्षवालां, अने तमारां शास्त्रो-अनेकांतपक्षवालां एटलु ज नही पण तेमनां शास्त्रो-हिंसाना उपदेशथी मिश्रित थएलां, अने तमारां सर्वजीवोना हितना उपदेशवालां. बीजा मतना आचार्योए सरल भावे कांइ अयुक्तपणे कहेलुं हशे, पण तेमना शिष्य परिवारे तो काइनुं कांइ उलटुंज करीने दह्य छे. पण तमारा शासनमा ए बनाव बनवा पाम्यो नथी. तेमां. तो ए
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