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एवी वृत्ति तेज अहिंसावृत्ति. आखी दुनिया शांतिने खोळे छे, त्रस्त दुनिया त्राहि त्राही करीने पोकारे छे, छतां तेने शांतिनो रस्तो जडतो नथी. बिहारनी आ पवित्र भूमिमां शांतिनो मार्ग क्यारनो नकी थई चुक्यो छे, पण दुनियाने ते स्वीकारतां हजू वार छे. दुनीया ज्यारे निर्विकार थशे, त्यारेज महावीरनु अवतारकृत्य पूर्णताने पामशे." इत्यादि ॥
७ पृ० ११० थी-आनंदशंकर बापुभाई ध्रुवना उद्गारो" स्याद्वाद एकीकरणतुं दृष्टिबिंदु अमारी सामे उपस्थित करे छे. शंकराचार्य-स्याद्वाद उपर जे आक्षेप को छे ते मूलरहस्यनी साथे संबंध राखतो नथी । ए निश्चय छे के-विविध दृष्टिविंदुद्वारा निरीक्षण कर्या वगर, कोई वस्तु संपूर्णस्वरूपे समजवामां आवी शके नहीं. " स्याद्वाद" संशयवाद नथी, पण विश्वनुं केवी रीते अवलोकन करवू जोइए ए अमने शिखवे छे."
. ८ पुनः पृ० ११२ थी-जेम आधुनिक तटस्थ पंडि-. बोना जैनधर्मना तत्त्वो जोवायी-वेदवेदांतादिक एकांत पक्षना कि
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