________________
COOLOODOORNER
200000000000000000000000
श्रीः।
शार्दूलविक्रीडितवृत्तम् । यं शैवाः समुपासते शिव इति ब्रह्मेति वेदान्तिनो बौद्धा बौद्ध इति प्रमाणपटवः कति नैयायिकाः। अईनित्यथ जैनशासनरताः कर्मेति मीमांसकाः सोऽयं वो विदधातु वाञ्छितफलं श्रीवीतरागः प्रभुः ॥१॥
अर्थ-शैवानुयायिओ शिव समजीने, वेदांतिओ ब्रह्मा गणीने, बुद्धना भक्तो बुद्ध जाणीने, प्रमाणमां चतुर एवा नैयायिको कर्ता कल्पीने, जिनेंद्रना उपासको जिन मानीने, अने मीमांसको कर्म कहीने जेनी उपासना करी रह्या छे, ते रागद्वेष आदि दोषोथी मुक्त थएलो श्रीवीतरागप्रभु* तमारा वांछित फलने आपवावाळो थाओ.
OCT@930000090535000000000000
* श्रीवीतराग प्रभुनु यथार्थ स्वरूप अमोए एज पुस्तकना प्रथम भागना पृ. १७० थी श्रीसिद्धसेनदिवाकरविरचितपरमात्मस्वरूपद्वात्रिंशिकाथी ) जणावेल छे त्यांथी जोइ लेवु.
00000000000000000000000
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org