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श्रेयः ( पुण्य ) जैनके हिस्सेमें है “ परन्तु ब्राह्मणधर्म पर जो जैनधर्मने अक्षुण्ण छाप मारी है उसका यशः जैनधर्मके ही योग्य है. अहिंसाका सिद्धान्त जैनधर्ममें प्रारम्भसे है और इस तत्त्वको समजनेकी त्रुटिके कारण बौद्धधर्म अपने अनुयायी चिनीयोके रूपमें सर्वभक्षी हो गया है. ब्राह्मण और हिन्दुधर्ममें मांसभक्षण और मदिरापान बन्द हो गया यह भी जैनधर्मका प्रताप है." ___“ दया और अहिंसाकी ऐसी ही स्तुत्य प्रीतिने जैनधर्मको उत्पन्न किया है. स्थिर रक्खा है और इसीसे चिरकाल स्थिर रहेगा. इस अहिंसाधर्मकी छाप जब ब्राह्मणधर्म पर पड़ी
और हिंदुओको अहिंसा पालन करनेकी आवश्यकता हुई तब यज्ञमें पिष्टपशुका विधान किया गया. सो महावीरस्वामीका
उपदेश किया हुआ धर्मतत्त्व सर्वमान्य होगया और अहिंसा * जैनधर्ममें तथा ब्राह्मणधर्ममें मान्य होगई " इत्यादि.
ता. ३०-९-१९०४ श्री जैनश्वेताम्बर कोन्फरन्सना त्रीजा अधिवेभान-वडोदरामां आपेला भाषण उपरथी.
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