________________
पश मेळवी रह्या छे ते बधाए वचनो तमारा सिद्धान्तरूपमहासमुद्रयी उडी रहेलां बिन्दुओज छे. ॥ ४१ ।।
(३) श्रीहरिभद्रसरिः। ए हरिभद्रसूरिजी पण प्रथम वेदवेदान्तादिक सर्वविद्यामां महानिपुण प्रसिद्ध ब्राह्मणज हता. “ मने जे वाक्यनो अर्थ बेसे नहीं अने ते बीजो बतावे तो हुँ तेनो शिष्य थईने रहुं" एवी प्रतिज्ञा करीने वादिओने ढूंढता फरता हता.
एक दिवसे जैनउपाश्रयनी ननीकमांथी नीकळतां 'चकिदुग्ग हरिपणगं' नामर्नु वाक्य गोखी रहेली वृद्धसाध्वीना मुखथी सांभळ्यु. अर्थ न बेसतां अन्दर जई साध्वीने अर्थ पूज्यो. तेणीए पोतानो अधिकार न होवाथी गुरुनो उपाश्रय बतान्यो. तेमनी पासे जैनतत्त्वनो रहस्य समजी जैनाचार्य बनी चौदसोने चुमालीश नवीन ग्रन्थोनी रचना करी छे. तेमांना एक लोकतत्त्वनिर्णय नामना अन्यमा पोते कहे छे के
नेनिरीक्ष्य विषकण्टकसर्पकीटान् सम्यक् पथा जति तान् परिहृत्य सर्वान् ।
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org