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( १८२) भावार्थ-जे चारे लोकमां उत्तम एवा लोकोत्तर भगवान्नी (परम परमात्मानी ) आज्ञाने अंगीकार करीने आ चन्द्र अने सूर्य पण आ दुनीयाने उपकार करवा माटे खुशीथी उदय थया करे छे. एवो ते एकन जिनेन्द्र परमात्मा अमारा कल्याणने माटे थाओ॥ २२ ॥
अवत्येव पातालजम्बालपाताद्
विधायाऽपि सर्वज्ञलक्ष्मीनिवासान् । यदाज्ञाविधित्साश्रितानङ्गभाजः
स एकः परात्मा गतिमें जिनेन्द्रः ॥ २३ ॥ भावार्थ-जे भगवन्तनी आज्ञा करवानी इच्छाने आश्रित यएला भव्य प्राणिओ छे तेमने सर्वज्ञलक्ष्मीना घररूप बनावी, नरक निगोदादिक कादवमां पडतांथी बचाव करे छे एवो ते एकन जिनेंद्र परमात्मा अमारा कल्याण माटे थाओ ॥ २३॥ सुपर्वद्रुचिन्तामणीकामधेनु
प्रभावा नृणां नैव दूरे भवन्ति । चतुर्थे यदुत्थे शिवे भक्तिभाजां
.... स एका परात्मा गतिमें जिनेन्द्रः ॥ २४ ॥
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