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( १८१) भावार्थ-जे प्रमुथी उत्पन्न थयेला दश प्रकार सद्धमना साम्राज्यने वश थएलो आ समुद्र पृथ्वीने डुबावतो नथी. तेमन वर्षा पण वखतो वखत वर्षीने लोकोने धीरज आप्या करे छे एवो ते एकज जिनेन्द्र परमात्मा अमारा कल्याणने माटे थाओ॥२०॥
न तिर्यग् ज्वलत्येव यज्ज्वालजिव्हो
यदृषं न वाति प्रचण्डो नभस्वान् । स जागर्ति यद्धर्मराजमभावः
स एकः परात्मा गतिमें जिनेन्द्रः ॥ २१ ॥
भावार्थ-जे भगवंतना कहेला दश प्रकार धर्मराजाना जाग्रत प्रतापथी अग्नि तिरछो ज्वलित थतो नथी. अने प्रचण्ड वायु पण उंचो वातो नथी एवो ते एकज जिनेन्द्र परमात्मा अमारा कल्याणने माटे थाओ॥ २१ ॥
इसौ पुष्पदन्तौ जगत्यत्र विश्वो
पकाराय दिष्टयोदयेते वहन्तौ । उरीकृत्य यत्तुर्यलोकोत्तमाज्ञां
स एकः परात्मा गतिमें जिनेन्द्रः ॥ २२॥
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