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थों सत्यस्वरूप छे तेनो इनकार केवी रीते करी शकवाना छे ! ज्यारे सत्य वस्तुने तपासवावाळा सज्जनपुरुषो प्रगट थशे त्यारे ते पदार्थोनुं सत्य स्वरूप प्रगट थया वगर रहेशे नहीं. ॥ अने अमोए तेवा सज्जन पुरुषोना लेखोनो संग्रह करीने आ पुस्तकमां बताव्यो छे. तोपण आ जगो उपर ते लेखोमांयी किंचित् इसारो करी बतावू तो ते अस्थाने नहीं गणाय अने स्थान शुन्य पण नहीं रहे.
जुवो-वा० न० उपाध्येनो लेख-तेओ पृ. १२ मां लखे छे के-“घणा स्मृतिग्रन्थोमां शास्त्रीयग्रन्थोमा भने टीकापन्योमा जैन अने बौद्ध एओने वेद बाह्य माने छे. जैनग्रन्योनुं सूक्ष्माऽवलोकन करतां जैनधर्म ए जूदो धर्म नथी पण उपनिषत्कालीन अने ज्ञानकांडकालीन, महान् महान् ऋषिओना जे उत्तमोत्तम मतो हतां ते सर्वे एकत्र ग्रथित करीने बनावेलो धर्म होय एम देखाई आवे छे, अर्थात् जैनधर्मनुं प्रथमनुं स्वरूप कहीए तो विशुद्ध छे. एटले जे वैदिक धर्म ते ज जैन धर्म छे. एनां अनेक प्रमाणो छे" इत्यादि. __आ फकराथी विचार करवानो ए छे के प्रथम वेदकाल अने ते पछी ज्ञानकांडकाल. एम घणा पंडितो मानी बेठेला छे
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