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( ४ )
उपर वादविवाद शरु करी कर्मकांडीय जडोने पण वादविवादनी, बुद्धिवादनी अने प्रत्यक्षनी साथे मेळ राखी वेदवाक्योनो अर्थ करवानी टेव पाडी. “ लोके व्यवायामिषमद्यसेवा" इत्यादि स्वाभाविक संसार सुखमां आसक्त रहेनारा अने इन्द्रियसुख एज पुरुषार्थ छे एम माननारा लोकोमा विषयोना माटे तिरस्कार उत्पन्न थयो. विषयसुखोपभोग करतां इन्द्रियदमन करवामांज विशेष मजा छे अने खरं सुख छे, एम माननाराओनों वर्ग वधवा लाग्यो. ( इन्द्रियदमन करवू एज पुरुषार्थ छे. एम माननारा जे लोको तेज प्रथम जैन हता एम अमोने लागे छे.) तेओने ए मांसादि हिंसानो परम तिरस्कार उत्पन्न थयो. ते दखतना यज्ञ यागादिकोना अत्यन्त प्रमाणभूत ग्रन्थो विगैरे अप्रमाण छे एम चोक्खी रीते कही पोतार्ने कार्य साधवा करतां तेमांथीन काइएक तोड काढवो ए तेओने पोतानो हेतु साधवा माटे विशेष ठीक लाग्यु. तेओए ब्राह्मण ग्रन्थोमां मेधाने प्रथम पुरुषमां, पछी घोडामां, पछी बळदमां, पछी मृगमां, पछी हरिणमां ए प्रमाणे आणतां आणतां छेवटे धान्यमां आणी मुक्युं. तात्पर्य-आ प्रमाणे यज्ञ यागादिकोमा प्रत्यक्ष पशुओनी
१ मैथुन मांस अने मदिराना सेवनथी. २ यज्ञने.
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