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अद्यापि पण छे.
हिंसाने, खरो
छे तेमज बीजा साधुओना पण छे. पाटण, खंबात, जेसलमेर, नेपुर आदि स्थळोना जैन भंडार लाखो पुस्तकोथी भरपुर छे. ने विद्याना खरा भंडाररूप छे. आ प्रमाणे दृढमूळ नाखी चालेलो आ अहिंसारूप परमधर्म आपणी नजर आगळ ब्राह्मणोना धर्मने, वेदमार्गने, तथा यज्ञमां थती को एज धर्मेलगाड्यो छे. बुद्धना धर्मे वेदमार्गनोज इनकार कर्यो हतो. तेने अहिंसानो आग्रह न हतो. ए महा दयारूप, प्रेमरूप धर्म तो जैनोनोज थयो आखा हिंदुस्थानमांथी पशुयज्ञ निकली गयो छे. फक्त छेक दक्षिणमां ज्यां बौद्ध के जैननी छाया बराबर पडी शकी नथी त्यांज ते चालु छे. एटलुंज नहिं पण उपनिषदोनो ज्ञानमार्ग सर्वथा सतेज थई जैनोना जीवाजीव तथा कर्मधर्मरूप वाद परत्वे घणो बहार आव्यो छे. आम शंकारूप बौद्ध तथा जैन धर्मोए दर्शनोना परमधर्मोनो रस्तो कर्यो छे. तत्त्वदृष्टिने खरेरूपे प्रवर्त्तवानो मार्ग कर्यो छे. ने वर्ण जाति बधु मूलावी दई मनुष्यमात्र ने परमप्रेममा एकात्म भाव पमाडनार ब्रह्मज्ञाननो उदय सूचव्यो छे. "
१ खरो धक्को लगायो एम कहेलुं आ ठेकाणे शोभतुं नथी. पण लोहनी नदीओमां तणाइ रहेलाओने बहार काढ्या छे एम कहेता तो -बधारे शोभतुं.
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