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(९) थयु ए पाछळ कह्या प्रमाणे जैन अने बौद्धमतनो सर्वत्र भरतखंडमां प्रचार थयो ते शिवाय बौद्धपन्थियोनो ब्रह्मदेश, सयाम, चीन, जापान, सीलोन, तिबेट, अर्फघाण, सैबीरीया विगेरे पृथ्वीना लगभग अर्धा भाग उपर प्रचार थयो हतो, एम लोक मानता हता. पण पाछळ कह्या प्रमाणे जैन अने बौद्धमत सर्वत्र भरतखंडमां तो प्रसरेलाज हता ए उपरथी सहेज ध्यानमां आवशे. पछी कालान्तरे यद्यपि ते लुप्त थयो तो पण हालना आपणा आचार विचारो जोतां तेमां बौद्धोए अने जैनोए अमारा भारतीयो उपर घणी क्रिया करींने बतावी छे ए निर्विवाद रीते सिद्ध थाय छे. लातो मारो, गालो आपो, हांकी कहाडो, पथरा मारो, मारी नांखो, वखते खावा मलो या न मलो, तो पण उपदेशनु काम अखंड रीते चालु राखवू तेमां जरा पण पाछळ हठवू नहीं, एवं जे ख्रिस्तीधर्मोपदेशकोमा व्रत देखाय छे, अने तत्पन्थिय लोको जेर्नु मोटुं अभिमान धरावे छे, ते तमाम व्रतो घणा प्राचीनकालमां जैनधर्मियोमा हतां, एम मानवाने अमोने घणां ग्रन्थोमां कहेलां प्रमाणो मळ्यां छे. तात्पर्य-ए प्रमाणे नाना प्रकारना कष्टो वेठी, अने अत्यन्त कठिन एवा कंगाल स्वार्थनो त्याग करी, जैनोए आखा भरतखंडमां ठेकठेकाणे, शहेर शहेरमां जैनधर्मनो प्रचार
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