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________________ (१०) अमोए आ पुस्तकमा छपावेला लेखो शिवाय बीजा पण घणा मध्यस्थ विद्वानो तरफथी-" लेखो" बहार पडेला छे, पण केटलीक अनुकूलताना अभावे ते बधा संपूर्ण लेखो दाखल न करतां ते तर्फ वाचकोनुं ध्यान खेंचवा माटे तेमांना केटलाक टुंका टुंका फकरा आ स्थले टांकी बतावू छु. ते नीचे प्रमाणे 'साधु' सरस्वतीभंडार-तत्त्वदर्शी-मार्तण्ड-लक्ष्मीभण्डारसन्तसन्देश आदि उर्दू तथा नागरी मासिकपत्रना संपादक, विचारकल्पद्रुम-विवेककल्पद्रुम-वेदान्तकल्पद्रुम-कल्याणधर्म-कबीरजीका बीजक आदिग्रन्थरत्नोना रचयिता, तथा विष्णुपुराणादिना अनुवादक सुप्रसिद्ध महात्मा श्री सुव्रतलालजी वर्मन एम. ए. पोताना संपादित उर्दू मासिक पत्रना जान्युआरी सं. १९११ ना अंकमां प्रकाशित " महावीरस्वामीका पवित्र जीवन" नामना लेखमां केवल महावीरस्वामीना माटेज नहीं किन्तु एवा सर्व जैनतीर्थकरोना, जैनमुनिओना, तथा जैनमहात्माओना संबन्धमां लखी गया छे के–“ गये दोनों जहान नजरसे गुजर, : १. संसारमें-पीछेका और यह दोनो काल हमारा चला गया परन्तु हे प्रभो तेरे जैसा पवित्र आज तक हमको कोई न मिला, Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.005250
Book TitleJainetar Drushtie Jain
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarvijay
PublisherDahyabhai Dalpatbhai
Publication Year1923
Total Pages408
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size13 MB
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