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________________ ( ११ ) तेरे हुसनका कोई बशर न मिला " यह जैनीयोके आचार्य गुरु थे. पाकदिल, पाकखयाल, मुजस्सम पाकी व पाकीजगी थे. हम इनके नामपर इनके कामपर, और इनकी बे नज़ीर नैफ्सकुशी व रिऔजतकी मिसालपर जिस कदर नाज ( अभिमान : करें बजा ( योग्य ) है । ३ हिंदुओ ? अपने इन बुजुर्गोंकी इज्जत करना सीखो... तुम इनके गुणोंको देखो. उनकी पवित्र सूरतोंका दर्शन करो, उनके भावोंको प्यारकी निगाह देखो, यह धर्म कर्मकी झलकती हुई, चमकती, दमकती, मूर्ते हैं... इनका दिल विशाल था, वह एक वेपायाकनारें समंदर था जिसमें मनुष्यप्रेमकी लहरें जोरशोर से उठती रहती थी. और सिर्फ मनुष्यही क्यों उन्होंने संसारके प्राणीमात्रकी भलाई के लिये सबका त्याग किया. जानदारोंका खून बहाना रोकनेके लिये अपनी जिंदगीका खून कर दिया । यह अहिंसाकी परमज्योति - वाली मूर्तियां है। वेदोंकी श्रुति " अहिंसा परमो धर्मः " कुछ १ पाउं से लेकर मस्तक तक पवित्र थे. २ अद्वितीय ॥ ३ मनको काबू रखनेवाले ॥ ४ ऐसें भगवानकी, ५ भक्तिपर ॥ ६ जितना अभिमान करे तितनाही योग्य है. ७ वह एक किनारे विनाके समुद्रये ॥ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.005250
Book TitleJainetar Drushtie Jain
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarvijay
PublisherDahyabhai Dalpatbhai
Publication Year1923
Total Pages408
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size13 MB
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