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(१३३) देशमां धर्मवृद्धि अटकी छे. पण आर्यदेशमां ईश्वरत्व भावनानी सादी आकृति मूल्थी छतां, अमुक रंगरूपथी भराई सर्वमान्यरीते ते कदापि स्थिर ठरी नथी, एटलामांन ए धर्मने खूब खिलावानों अवकाश मल्यो छे. वेदमंत्रोमां आ देव पेलो देव, एम घणा देवने ऋषिओ वारा फरती ईश्वररूपे पूजे छे पण अमुक एक ईश्वर नियत ठरावेलो जणातो नथी ".
अने ते दशमा काव्यना त्रिनाअने चोथा पदमां कयूं छे केनृशंसदुर्बुद्धिपरिग्रहाच्च ब्रूमस्त्वदऽन्यागममप्रमाणं ॥ १० ॥
आ वे पदनो भावार्थ मणिलालभाईना आपेला लेख उपरथी जणावू छु. तेमणे जणाव्युं छे के-" मोटा यज्ञोमां एक बेथी सो सो सुधी पशु मारवानो संप्रदाय पडेलो नजरे पडे छे ” इत्यादि " वली आ रक्तश्रावमां आनंद मानवा उपरांत सोमपानी अने छेवटना वखतमां तो सुरापानथी पण आर्यलोको मत्त यता मालूम पडे छे. परमभावनाना अग्रणीपदने पामेला ऋषिओमां एवो संप्रदाय जणाय ए अलबत आश्चर्य पेदा करवावालुं छे.". . पुनरपि “ नाटकादिकोथी जणाय छे के सारा महर्षिओ माटे पण-मधुपर्कमां गोवध करेलो छे. आश्चर्यनी वात छे के जे
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