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श्रीसुजनसम्मेलनम्
नाम
सर्वतन्त्रस्वतन्त्रसत्सम्प्रदायाचार्यस्वामिरामंमिश्रशास्त्रिप्रणीते जैनधर्मविषयेव्याख्यानदशके प्रथमव्याख्यानम्।
॥ श्रीमते रामानुजाय नमः ॥ सज्जन महाशय ! ___आज बड़ा सुदिन और माङ्गलिक समय है कि हम भारतवर्षीय जिनके यहाँ सृष्टिके आदिकालहीसे सभ्यता, आत्मज्ञान, परार्थे आत्मसमर्पण, आत्माकी अनाद्यन्तता ज्ञान चला आया है, बल्कि समयके फेरसे कुछ पुरानी प्रतिष्ठा पुरानी सी पड़गयी है, वे इस स्थानमें एकत्र हुये हैं, अवश्यही इसे सौभाग्य मानना, और कहना चाहिये, क्योंकि वैदिक मत और जैन मत सृष्टिकी आदिसे बराबर अविछिन्न चले आये हैं, और इन
१ गणे विद्यावतां यस्य प्रथमं नाम घोष्यते । सर्वतन्त्रस्वतन्त्रोऽसौ राममिश्रसुधीरयम् ॥
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