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(८४) 'अब हम उन्हें क्लेशमुक्त करेंगे । सज्जनों ! आप जानते हैं दुनियामें रुपया बहुतही आवश्यक वस्तु है, और वह बड़ेही कष्टसे मिलता है। यदि कोई उस्का सीधा और उत्तम द्वार है तो-शिल्प, और सेवा, तो अब ध्यानसे जानना, कि द्विनोंमें ब्राह्मण, क्षत्रिय सबसे बड़े समझे गये हैं, उन्होंने अपने हाथमें
आवश्यक बात कोई न रक्खी। ब्राह्मणोंने अपने हाथमें केवल कुशमुष्टि रक्खी, और क्षत्रियोंने खड्गकोशमुष्टि रक्खी। तब भला देखो तो जिन्होंने अपने हाथमें निकम्मी चीजें रख कर वैश्यों को कृषिवाणिज्य दे डाला, और शूद्रोंको उससे भी बढ़ कर शिल्प
और सेवा दे डाली । सज्जनों ! जानते हो-शिल्प कौन चीन है ? शिल्प वह है कि जिसके कारण इंगलैंड जगत्का बादशाह है, नहीं २ कहो शाहनशाह है, और जिस्के अभावही से हमारा देश, देश इसे क्या कहें, जन्मभूमि, जननी, भारतभूमि रसातलको जा रही है। विचारका स्थान है जब शिल्प शूद्रोंके हाथमें दे डाला तब तो वैश्य भी विचारे शूद्रोंके पीछे पड़ गये, क्योंकि कृषिमें दैवीआपत्का भय रहता है, और वाणिज्यमें तो और भी अधिक आपत्ति है, सबसे अच्छी शूद्रोंकी जीविका है । शिल्प, और सेवा, निस्के न कोई आपत् है नतो नुकसान । तब ही तो कहा गया है
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