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(७९) तो ते एकन दर्शनमाथी उत्पन्न भएलो होय छे अने ते तेमां सुप्रतिष्ठित थया पछीज अन्यद्वारा स्वीकृत थाय छे. दिग् अने आकाश ए बन्ने भिन्न द्रव्यो छे, ए जातनो वैशेषिकोनो खास स्वतंत्र तर्कसिद्ध सिद्धान्त छे. ते जैनदर्शनमां बिलकुल देखातो नथी. वेदान्त अने सांख्य जेवा अधिक प्राचीन दर्शनोमां तथा जैनदर्शनमा आकाश अने दिक् वच्चे बिलकुल भेद करवामां आव्यो नयी. ए दर्शनोमा एकळु आकाशज बन्नेनुं प्रयोजन सारे छे. - वैशेषिक अने जैनदर्शननी वच्चे मूल सिद्धान्तोमां भेदसूचक एवां केटलाक उदाहरणो नीचे प्रमाणे छे. पहेलाना मते आत्माओ अनंत अने सर्वव्यापी ( विमु ) छे. परन्तु बीजाना (भैनोना) मते तेओ मर्यादित परिमाणवाळा छे. वैशेषिको धर्म अने अधर्मने आत्माना गुणो माने छे. परन्तु उपर जणाव्युं तेम जैनो ते बन्नेने एक जातना द्रव्यो माने छे. एक बाबतमां, एक विरुद्ध वैशेषिक विचार अने तद्भिन्न जैनसिद्धान्त वच्चे केटलुक सादृश्य नोवामा आवे छे. वैशेषिकमतमां चार प्रकारना शरीरो मानेला छे पार्थिव शरीर जेवू के मनुष्य पशुआदिनू, जलात्मकशरीर जेम वरुणनी सृष्टिमां छे, अग्नियशरीर जेम अग्निनी सृष्टिमां छे, अने वायवीयशरीर जेम वायुनी सृष्टिमां मळी आवे छे. आ
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