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विचित्र विचार साथै सहक्षता धरावनारो जैनदर्शनमां पण एक विचार छे. जैनो पृथ्वीकाय, अप्काय, तेजस्काय, अने वायुकाय, एम चार काय माने छे. आ चार ४ मौलिक पदार्थों के जे मूळ तत्त्वो छे अथवा तो तेना पण सूक्ष्म भागो छे. तेनी अंदर एकएक विशिष्ट आत्मा रहेलो छे एम तेओ माने छे. आ जड-चैतन्यवादनो सिद्धांत उपर जणाव्या प्रमाणे असल सचेतनवादन परिणाम छे. वैशेषिकोनो एतद्विषयकविचार जो के मूळ एकन विचारप्रवाहमांधी उत्पन्न थएलो छे खरो, परन्तु तेमणे ते विचार लौकिकपुराणोना अनुरूपे गोठवेलो छे. आ बन्नेमां जैनमत वधारे प्राचीन छे अने ते वैशेषिक दर्शनना चार प्रकारना शरीरवाला मतना करतां पण तत्त्वज्ञानना वधारे पुरातन विकासक्रमना समयनो छे. मारा अभिप्राय मुजब वैशेषिक अने जैनदर्शननी बच्चे एवो कोई पण संबंधन न हतो के जेथी एक दर्शने बीजामाथी विचारो लीधा छे, एम स्थापित करी शकाय. छतां पण हु एम कबूल करूं छु के ए बे दर्शनो बच्चे केटलुक विचारसादृश्य अवश्य रहेढुं छे. वेदान्त अने सांख्यना मूळ तत्त्वभूत विचारो जैनविचारोथी तद्दन विरुद्ध छ; अने तेथी करीने जैनो पोताना सिद्धान्तने कोई पण
आंच आव्या दीघा सिवाय तेमना विचारो स्वीकारी शकेज नहीं परन्तु वैशेषिक ए एवा प्रकारचें दर्शन छे के नेयी जैनसिद्धान्त
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