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(७८) तेना उपादान कारणथी भिन्न छे. परन्तु वेदान्त अने सांख्य बन्ने सत्कार्यवादने माने छे. अर्थात् कार्य कारणने मिन्न माने छे. (३) ए बन्ने दर्शनोमां गुण अने द्रव्यनो पृथक् विभाग थएलो छे. ए छेल्ली बाबत तो आपणे उपर चर्चा गया छीए, तेथी हवे आपणे प्रथम बे मुद्दाओना संबंघमां विचार करवानो रह्यो छे.
(१) अने ( २ ) मां जे मन्तव्यो निरूपण करेलु छे, ते व्यवहारिक ज्ञान-साधारण बुद्धिना विचारो छे. ( अर्थात् सहु कोई समनी शके तेवा छे.) कारण के आपणा उपर वासनाओनी. साक्षात् असर याय छेन, तेमज कारणथी कार्य भिन्न छे ते पण आपणा अनुभवनी बहारनी वात नथी. उ. त. बीन अने वृक्ष ए पन्ने परस्पर भिन्न छे, एम दरेक विवेकी माणस जाणे छे; अने ते मात्र सामान्य अनुभवनो विषय छे तेम पण लाग्या विना नहीं रहे. आवा विचारोने अमुकदर्शनना खास लक्षणरूपे मानी शकायन नहीं; अने एक बीना मतोमां आवा विचारो समानरूपे जोवामां आवे ते ते उपरथी ते, एक बीजाना मतमाथी लीधेला छे तेम पण कही शकाय नहीं. परन्तु जो बे भिन्न दर्शनोमां परस्पर विपरीते विचारदर्शी एकज सिद्धान्त आव्यो होय तो ते बाबत अवश्य विचारणीय होय छे. आवो सिद्धान्त मूळ
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