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कि विवेक और सुधि शरीरके गुण नहीं हैं अर्थात् जीते हुए शरीरके साथ कोई सत्य वस्तु होनी चाहिये कि जिसके गुण उसके साथ रहते हैं इस वस्तुको जीव कहते हैं जीवके पर्यायवाची अनेक शब्द हैं यथा आत्मा, अहं, स्वयं ( Self, Spirit, age, soul ).
शरीररहित या शरीरसहित जीव । जब जीव पूर्णतया पवित्र होता है तो वह कोई प्रकारके भी शरीर बिना रह सकता है । सूक्ष्मातिसूक्ष्म शरीर भी नहीं हो तो भी ठहर सकता है। परन्तु वह किसी प्रकारकी स्थिति धारण करे तब तक सजीव प्राणी दो वस्तुओं अर्थात् जड़ और आत्मासे मिलकर बना है।
यह समय आवे तब तक आत्मा और स्थूलशरीर भिन्न होनेका यह अर्थ नहीं कि आत्मा जड़शरीरसे मुक्त होजाय, जीव जिस प्रकार स्थूल शरीरको छोड़ जाता है वैसे ही मरती समय वह अन्य दो शरीरोंसे नहीं छूट सकता परन्तु वे शरीर उसकी नई अवस्थामें उसके साथ ही रहते हैं इनमेंसे एकमें उत्तेजक शक्ति होती है जिससे फिर सजीव प्राणी स्वयं अपना नवीन शरीर पैदा करता है।
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