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________________ (४९) जेमनु स्वरूप वृद्धिंगत थयुं छे-एवी निःसंशय बे जातिओ छे. 'सेमेटिक ' अने 'आर्य' ए बे छे. सॅमेटिकमां-ख्रिस्ती, याहूदीन, मुसलमीन, आरब विगेरे छे. आर्यपूर्वकालना हिंदुस्थानमा बे विशिष्ट जातिओना धर्म हता. आ बन्न वर्ग जीवद्देवस्वरूपना हता के, एक वर्ग जीवद्देवस्वरूपनो थईने बीजो जडदेवस्वरूपनो हतो, ए यथार्थ कही शकाय नहीं. तेमां जडदेवस्वरूपनो प्रादुर्भाव कांइक गूढकारणथी उत्पन्न थएलो, उन्मादअवस्थामां अथवा आनंदातिरेकमां मग्न थवाथी थयो. जीवद्देवस्वरूपवालो जे बीजो वर्ग हतो, तेमां-वैराग्य, अने तपस्विवृत्तिनो संबंध हतो. आ बे तत्त्वथी आर्यधर्मना जुदा जुदा धर्म उत्पन्न थया. अत्यार सुधी विवेचन, उपोद्घातरूपे थयु. हवे यूरोपियनपद्धत्तिथी जैनधर्मनो विचार करवानो छे. आ देशमां-धर्मविचारोमांथी जैनधर्म उत्पन्न थयो एम मानवानी साधारण प्रवृत्ति छे. आ मत सामान्यथी यूरोपियन पंडितोमा प्रचलित छे, पण ए मत भूल भरेलो छे. जूनी शाखाना यूरो० विद्वानो एवं मानता हता के-महावीर 'गौतमबुद्ध करतां जरा मोटा समकालीन हता । तेमणेज जैनधर्मनी Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.005250
Book TitleJainetar Drushtie Jain
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarvijay
PublisherDahyabhai Dalpatbhai
Publication Year1923
Total Pages408
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size13 MB
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