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स्थापना करी, आमत भूल भरेलो सिद्धथएलो छे. हालना यूरोपियन विद्वानोनो मत एवो छे के-जैनधर्मनो संस्थापक पार्श्वनाथ होईने महावीर जागृति करनार हता.जैनोनी परंपराप्रमाणे तो जैनधर्म अनादिनो होइने अनेक व्यक्तिओ तरफथी जागृति मली छे. तेज चोवीश तीर्थकरो अथवा जिनो छे. आ मतने नि:संशय असल इतिहासनो आधार मले छे । कयो आधार ? ए, कहेवू कठीन छे. तो पण नीति ए विषय उपर-हेस्टिग्स साहेबना ग्रन्थमा अने प्रो० जेकोबीना निबंधमां “जैनधर्म पोताना केटलाक मतो प्राचीन जीवदेवना धर्ममाथी लीधेला होवा जोइए" एवं कहेलं होवाथी प्रत्येक प्राणी तो शुं पण वनस्पति अने खनिज पण जीवस्वरूपज छ । एवो जे तत्व छे ते महत्वनो छे, आ कारणथी जैनधर्म ए अत्यंत प्राचीन छे. जैनोना निग्रन्थोनो उल्लेख वेदोमां पण मले छे तेथी आ मारा कथननी प्रतीति थशे.
लोकोने जैनधर्मनो विचार महावीरना पछीथी करवो पडे छ। अथवा श्वेतांबर अने दिगंबर उपरथी करवो पडे छे. जैन धर्मनुं स्वरूप अनार्य लोकोनी प्रवृत्ति थया पछीथी झांखं देखाइ रह्यं छे, पण तेज स्वरूप आर्यधर्मनो उंचामा उंचो आदर्श छे. जैनधर्मनुं मूलकाम, धर्मना मूल उपर फटको मारनारा-ब्राह्म
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