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(१५) भुदी जुदी लेखनपद्धतिओने तिहासिक लेखनपद्धतिओ मानवी जोईए. एटले के देवर्द्धिगणीवाळा सिद्धान्तसंस्करणमां साहायभूत भनेली बधी हस्तलिखितप्रतिओमां जेजे भिन्न भिन्न लेखनपद्धतिओ मळी आवती हती ते बधी प्रमाणिक मानवामां आवी हती अने. तेथी ते सघळी पद्धतिओने ए सूत्रनी नकलोमां साचवी राखवामां भावी हती. आ विचार जो युक्तियुक्त जणातो होय तो आपणे सहुथी प्राचीन अने रूढिबहिष्कृतलेखनपद्धतिने आगमरचनाना आदिसमयनी अथवा तो तेना निकटसमयनी उच्चारसूचक मानी शकीए. अने सहुथी अर्वाचीन लेखनशैलिने सिद्धान्तना अन्तिमसंस्करणना समयनी अगर तेनी नजीकना समयनी उच्चारदर्शक मानी शकिए. वळी सहुथी प्राचीनरूपमा उपलब्ध थती जैन
न होई शके. बब्बे रूपो बाळा घणाज शब्दो थया हशे. परन्तु प्रायः प्रत्येक शब्दना बब्बे प्रण त्रण रूपो एक साथे प्रचलित रहेवानी बाबतमा मने जरूर शंका रहे छे.
१ कोई अहीं एवी दलील कर्या करे छे के आवी आर्ष एटले रूढि- . बहिष्कृतलेखनपद्धतिना अस्तित्वन कारण मात्र संस्कृतभाषानी असर छे. परन्तु जैनोनुं प्राकृतभाषानुं ज्ञान हमेशां एटलुं बधुं संगीन रघु हतुं के जेथी तेमने पोताना आगमोने समजवा माटे संस्कृतनी सहायता लेवीज पडती नहोती के जेथी तेनी तेना उपर असर पडे, परन्तु आधी उलटुं
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