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(१४) छे. कारण के ए आगमोनी प्राचीन भाषाने चालु भाषानी रूढिमां फेरववानो वहिवट ठेठ देवर्द्धिगणि सुधी चालु रह्योहतो. अने अन्ते देवर्द्धिगणीना संस्करणेज ते वहिवटनो अन्त आण्यो हतो, एम मानवाने आपणने कारणो मळे छे. जैनप्राकृतभाषामां स्वरूपसंगत वर्णविन्यासनो जे अभाव दृष्टिगोचर थाय छे तेनु कारण जे लोकभाषामां (Varnacular Language) ते पवित्र आगमो हमेशां उच्चाराई रह्या हता, ते भाषामां निरन्तर यतुं रहेलु क्रमिक परिवर्तनन छे. जैनसूत्रोनी सघळी प्रतिओमां एक शब्द एकन रीते लखेलो जोवामां आवतो नथी. आ वर्णविन्यासविषयक विभिन्नतानां मुख्य कारणोमांचें एक कारण तो वे स्वरो वच्चे आवता असंयुक्तव्यंजननो प्रकृतिभाव .(तदवस्थ राखवा रूप), लोप के मृदुकरण थवा रूप छे, अने बीजुं कारण वे संयुक्तव्यंजनोनी पूर्वेना ए अने ओने तदवस्थ एटले कायम राखवा रूप अथवा तेने क्रमथी इ अने उ ना रूपमा परिवर्तित करवा ( लघूकरण) रूप छे, ए तो अशक्यज छे के एकज शब्दना एकज समयमा एकथी वधारे शुद्ध गणवा लायक उच्चारो होई शके. उदाहरण तरीके-भूत, भूय, उदग, • उदय अने उअय, लोभ, लोह, इत्यादि. आपणे आ प्रकारनी
१ ई एम नथी कहेतो के कोई पण शब्दना एक काळमां बे रूपोज़
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