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________________ थई पडेलां होवाथी प्रत्येक उपाश्रयने ए आगमग्रन्थोनी नकलो पूरी पाडवा माटे तेनी घणी नकलो कराववामां आवी हशे. आ रीते जोतां देवर्द्धिगणीनी सिद्धान्तनी आवृत्ति ते तेमनी पहेलां अस्तित्व धरावता पवित्र सिद्धांतग्रंथोनो लगभग प्राचीनन आकारमां निर्णीत करेलो एक नवो पाठ मात्र छे. आ आवृत्तिकारे, संभव छे के, प्राचीन सिद्धांतमां कोईक कोईक उमेरा कर्या हशे. परन्तु आटला उपरथी संपूर्ण सिद्धांत नवो बनाववामां आव्यो छे एम तो खरे खर नन कही शकाय. आ अन्तिमआवृत्तिमा निर्णीत थएला पाठनी पूर्वेनो सिद्धांतपाठ पण केवळ यतिओनी स्मरणशक्तिना आधारे ज लखवामां आवता पाठ जेवो अव्यवस्थित नहोतो परंतु ते पाठ हस्तलिखितप्रतिओ साथे मेळवेलो हतो. आटलं विवेचन कर्या बाद हवे आपणे जैनोना पवित्र आगमोनी रचनानो समयविषयक विचार करीए. संपूर्ण आगमशास्त्र प्रथम तीर्थकरनुं न प्ररूपेठं छे ए जातना जैनोना विचारनुं तो निराकरण करवा खातरज हुं अहीं सूचन करूंछु. सिद्धांतना मुख्यग्रन्थोनो समय नक्की करवा माटे आपणे आना करतां वधारे सारां प्रमाणो-परावाओ एकत्र करवा जोईए. छूटक अने असंबद्ध सत्रालापको गमे त्यारे आगमग्रन्थोमां दाखल थई गया होय तथा Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.005250
Book TitleJainetar Drushtie Jain
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarvijay
PublisherDahyabhai Dalpatbhai
Publication Year1923
Total Pages408
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size13 MB
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