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इस प्रकार अपने विचारशक्तिका केन्द्र यदि हम वर्तमान बुग तथा विश्वको मानले तो हमारे चारों ओर यावत् जीते हुए प्राणी जो हम देखते हैं वे सब आत्मा तथा जड़ पदार्थके मिश्रितरूपमें दिखाई देंगे।
शाश्वत जीवन ।
यदि संसारको हम यह समझे कि यह नित्य है तो इसके प्रत्येक व्यक्तिगत जीव जन्म ( जन्मान्तर ) पहिले ही विश्वमें विद्यमान थे और यह दैहिक शरीर या जीवनके अन्तमें भी जीते रहेंगे । अर्थात् जितने जीव अभी इस कालमें हैं वे अनादिकालसे अनन्तकाल तक रहेंगे। हम नहीं कह सकते कि ये कब हुए थे और कब नाश हो जायगे । जीवनके पूर्व यह अपना जीवन नहीं था त्यों ही अन्तमें भी जीवन नहीं होगा क्योंकि कोई ऐसा जीवन नहीं कि जिसके पहिले जीवन नहीं हुआ है, न कोई ऐसा है कि जिसके अन्तमें जीवन नहीं हो। अस्तु, कोई जीवन ऐसा नहीं है कि जिसके पश्चात् जन्म मरण : न हो. अस्तु, यह सिद्ध हुआ कि आत्मा अनादि तथा । अनन्त है।
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