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(११८) होता है। अर्थात् कुछ सुखकर तथा कुछ दुःखके कारण होजाते हैं।
कर्मोंके स्वभाव । ___ इस प्रकारके अस्वाभाविक कर्मोंका स्वभाव आत्माके . कितने ही गुणोंको ढंक देता है इससे समझमें आ जायगा कि क्यों कुछ मनुष्य दूसरे मनुष्योंसे अधिक अज्ञानी, दुःखी, सुखहीन, अल्पायु तथा निर्बल अथवा विशेष सुखी, सुन्दर स्वरूप, दीर्घायु तथा सबल होते हैं कुछ उच्चवर्णमें उत्पन्न होते हैं और कुछ नीचवर्णमें। इत्यादि जहां तक विचार करें यह कर्मका ही फल ज्ञात होगा।
कर्मको रोकनेते भविष्य परिणाम ।
अब ज्यों २ इन कर्मोको ग्रहण करके अपने साथ मिलानेकी क्रिया बन्द की जाती है और ज्यों ज्यों पूर्वजन्मान्तरोंमें एकत्रित किया कर्मोका समूह अपनेसे दूर किया जाता है त्यों २ मनुष्यके अज्ञान, क्रूरता, दुःख, दुर्बलतामें कमी होती जाती है और इस प्रकारसे वे सत्य चरित्रवान बन जाते हैं।
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