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(३२) वाद, आरंभवाद, शून्यवाद, आदि दाशनिकोके निगूढ विचार ही दर्शन है, तब तो कहना ही होगा कि सृष्टिकी आदिसे जनमत प्रचलित है. ___सजनो ? अनेकांतवाद तो एक ऐसी चिज हैं उसे सबको मानना होगा और लोकोने मानाभी है. देखिये-" सदऽसद्भ्यामनिर्वचनीयं जगत् " कहनाही होगा किसी प्रकारसे सत् होकर भी वह किसी प्रकारसे असत् है. तो अब अनेकांत मानना ही सिद्ध हो गया. नैयायिक-तमः को तेजोऽभाव स्वरूप कहते है. वेदांतिक जोरसोरसे खंडन करते है. जैनसिद्धांत-किसी प्रकारसे भावरूप कहते है, और किसी प्रकारसे अभावरूप भी कहते है, तो अब दोनोकी लडाईमें जैनसिद्धांतही सिद्ध हो गया. क्योंकि दोनो सच्च नही, परंतु जैनसिद्धांत ही सच्च है.
इसी रीतिपर कोई कोई आत्माको ज्ञानस्वरूप कहते है, और कोई ज्ञानाधार स्वरूप बोलते है, तब तो कहना ही क्या जैनोंका अनेकांतवादही पाया गया.
इसी रितीपर कोई ज्ञानको द्रव्यस्वरूप मानते है तो कोई वादी-गुणस्वरूप मानते है.
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