SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 111
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ तेन प्रमाणे वर्धमानना उपपदार्थक जे वीर अने महावीर एवा शब्दो तेन प्रमाणे उपपदना अर्थे उपयोगमा लीधेला जणाई आवशे. . तीर्थकर शब्दनो ते एथी पण जुदा स्वरूपे उपयोग करता हता. जैनोना मत प्रमाणे तीर्थकर एटले धर्मसंस्थापक अने तेज तीर्थकर शब्द बौद्ध अनुयायीओना मतमां बुद्धधर्मविरुद्ध नास्तिकपंथ काढनाराओना. माटे वपराएलो छे. सुगत अने तथागत विगेरे शब्दोमाथी हरएक पंथानुयायी तेमना केटलाक विशेष शब्दो पसंद करी पोताना ग्रंथोमां वापरता हता, ए उपरथी शुं सिद्ध थाय छे ? ते शब्दो जैनोए बौद्धो पासेथी लीधा एम सिद्ध थई शके खलं ? बिलकुल नहींन. कारण उपरना शब्दनो धात्वर्थों करतां कांई जुदान अर्थे एक वखत एनो नक्की उपयोग थई चुक्यो एटले पछी एक तरफ ते शब्दनो उपयोग तेज अर्थमा करवो जोईए अथवा तो ते शब्दनो कायमनो त्याग करवो जोईए. तथागत, सुगत, विगैरे शब्दोना एक वखत अर्थ करी चुक्या पछी जैनोए तेओना पासेथी ते शब्दो लेईने तेज अर्थमां बापरेला होय एम संमवतुं नथी. ए विषे विचार करतां एम देखाय के के सामान्य माणसो करतां विशेष सद्गुणी पंडित एवा पुरुषोने Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.005250
Book TitleJainetar Drushtie Jain
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarvijay
PublisherDahyabhai Dalpatbhai
Publication Year1923
Total Pages408
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size13 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy