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________________ (१४) बहुत ही असली स्वतंत्र सादा बहुत मूल्यवान् तथा ब्राह्मणों के मतोंसे भिन्न है. तथा यह बौद्धके समान नास्तिक नहीं है." इत्यादि ॥ ५ श्रीयुत वरदाकांत मुख्योपाध्याय एम० ए० बंगाला श्रीयुत नथुराम प्रेमीद्वारा अनुवादित हिंदी लेखथी-- ___ "१ जैनधर्म हिंदुधर्मसे सर्वथा स्वतंत्र हैं. उसकी शाख या रूपांतर नहीं है. २ पार्श्वनाथजी जैनधर्मके आदि प्रचारक नहीं था, परंतु इसका प्रथम प्रचार ऋषभदेवजीने किया था. इसकी पुष्टिके प्रमाणोंका अभाव नहीं है. ३ बौद्धलोग महावीरजीको निग्रंथोका (जैनियोंका ) नायक मात्र कहते हैं स्थापक नहीं कहते है." इत्यादि. ___६ श्रीयुत तुकारामकृष्ण शर्मा लट्ट बी. ए. पी. एच. डी. एम. आर. ए. एस. एम. ए. एस. बी. एम. जी. ओ. एस. प्रोफेसर-संस्कृत शिलालेखादिकना विषयना अध्यापक क्विन्स कॉलिन बनारस काशीना दशम वार्षिकोत्सव उपर आपेला व्याख्यानमाथी-“ सबसे पहले इस भारतवर्षमें ऋषभदेव नामके महर्षि उत्पन्न हुए, वे दयावान् , भद्रपरिणामी, पहिले Jain Education International For Private & Personal Use Only ___www.jainelibrary.org
SR No.005250
Book TitleJainetar Drushtie Jain
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarvijay
PublisherDahyabhai Dalpatbhai
Publication Year1923
Total Pages408
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size13 MB
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