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(१३) योगका साधन करके अपने आपको मुकम्मिल और पूर्ण बना लिया था "....इत्यादि.॥
२ वळी-मि० कन्नुलाल जोधपुरी माह दिसंबर सन् १९०६ अने जान्युवारी सन् १९०५ The Theosophist (धी थिओसोफिस्ट ) पत्रना अंकमां लखे छे के-" जैनधर्म " एक ऐसा प्राचीनधर्म है कि जिसकी उत्पत्ति तथा इतिहासका पत्ता लगाना एक बहुत ही दुर्लभ बात है । इत्यादि.
३ जर्मनीना-डॉ० जोहनस हर्टल. ता. १७ । । । १९०८ ना पत्रमा कहे छे के-" मैं अपने देशवासियोको दिखाऊगा कि कैसे उत्तम नियम, और ऊंचे विचार, जैनधर्म और जनआचार्योम है. जैनका साहित्य बौद्धों से बहुत बड कर है
और ज्यों ज्यों मैं जैनधर्म और उसके साहित्यको समझता हूं त्यों त्यों मैं उनको अधिक पसंद करता हूं" ॥ इत्यादि.
४ पेरिस ( फ्रांसनी राजधानी ) ना डॉ० ए० गिरनाट पोताना पत्र-ता० ३-१२-१९११ मां लखे छे के-“मनुष्योंकी तरक्कीके लिये जैनधर्मका चारित्र बहुत लाभकारी हैं, यह धर्म
२ यथार्थपणे परम स्वरूपको।
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