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धर्म, नीति, राजकार्यधुरन्धरता, शास्त्रदान, समाजोन्नति आदि बातोंमे उनका समाज इतरजनोसें बहुत आगे था."
१६ रायबहादुर पूर्णेन्दु नारायणसिंह एम. ए. बांकीपुर वाला लखे छे के-" जैनधर्म पढनेकी भेरी हार्दिक इच्छा है, क्यों की में खयाल करताहूं कि व्यवहारिक योगाभ्यासके लिये यह साहित्य सबसे प्राचीन ( Oldest ) है. यह वेदकी रीति रिवाजोसे पृथक् है. इसमे हिन्दुधर्मसे पूर्वकी आत्मिकस्वतन्त्रता विद्यमान है, जिसको परमपुरुषोने अनुभव व प्रकाश किया है यह समय है कि हम इसके विषयमें अधिक जाने."
१७ टी. पी. कुप्पु स्वामी शास्त्री एम. ए. एसिस्टेन्ट गवनमेंट मुझियम तंजोरना एक अंग्रेजी लेखनो अनुवाद जैनहितैषी भाग १० अंक २ मां छपाएल छे तेमां जणाव्युं छे. के-- १" तीर्थंकर जिनसे जैनियोंके विख्यात सिद्धांतोका प्रचार हुआ है वह आर्य क्षत्रिय थे..
२ जनी अवैदिक भारतीय आर्यों का एक विभाग है."
सूचना-अमोए ए १७ लेखोनो उद्धार ' मुन्सी केशरीमल मोतीलाल रांका-अर्जीनवीस-व्यावरवालाए छपावेला पुस्तकपरथी करेल छे माटे जिज्ञासुओए ते मंगावी जोइ लेवू.
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