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( ११२) कणाद गौतमादि ऋषिओए अमारं धन खेंची ली, पण नथी. विशेष-कारण एज छे के-एकांतपणे जगत्तुं हित करनारो तो मावान् महावीरज छे. अने तेनुं निर्मल वचन सर्व पापने हरनालं छे. माटेज अमो वीरप्रमुनी भक्ति करवावाळा थया छे.॥३३॥
(४) श्रीहेमचन्द्रसूरिः। अढारदेशोना राजाधिराज गूजरातपट्टनाधीश श्रीकुमारपाल महाराजाना गुरुवर्य जगत्प्रसिद्ध सर्वज्ञकल्प श्रीहेमचन्द्रसूरीश्वजी श्रीमहावीरप्रमुना सत्यसिद्धांततत्त्वोना स्वरूपथी आकर्षित यई प्रभुना गुणरूपनी स्तुति करतां-एक अयोगव्यवच्छेदिका अने बीनी अन्ययोगव्यवच्छेदिका नामनी वे बत्रीशिओनी रचना करेली छे. पहेलीमां महावीर प्रभुमां कया कया गुणोनी योग्यता छे तेनो, अने बीनीमां अन्यमतना देवोमां कया कया गुणोनी अयोग्यता छे तेनो, टुंकमां सारांश गुंथन करीने बतावेलो छे. आ बेमांथी बीजी अयोग्यव्यवच्छेदिका बत्रिशीनी-स्याद्वादमञ्जरी नामनी टीका पूर्वाचार्य श्रीमल्लिसेनसूरिमहाराजा करी गएला छे. पण प्रथम बत्रीशीनी टीका नहीं होवाथी तेनो अर्थ भाषामां अमारा गुरु महाराज (श्रीमद्विजयानन्दसूरीश्वरजी-अपरनाम
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