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(१६४) विचार एटला माटे उत्पन्न थयो के त्रीनो वेद परमात्माना केशरूपे अने चोथो वेद मुखरूपे कल्पेलो छे. तेथीज आ विचार करवानी जरुर पड़ी छे.॥
५ पांचमो पाठ-ऋग्वेद अष्टक मानो छे तेमां ए छे के-यज्ञ करवा मांड्यो हतो-तेमांथी-सामवेद, गायत्री आदि अने यजुर्वेद उत्पन्न थया. आमां ऋग्वेद बताव्यो नथी. यज्ञमांथी तो ज्वालाओ निकले पण वेदो केवा स्वरूपथी निकल्या हशे अने ते शेनामां झीली लीधा हशे ! वेदो विना यज्ञनी विधि शेनाथी करी हशे ?
६ छठो पाठ-शतपय कां० १४ मानो छे तेमां तो--परमात्माना निःश्वासथीज चारे वेदोनी उत्पत्ति बतावी. तो विचार ए थाय छे के-अनादि स्वरूपना परमात्माए शुं ते निःश्वास एकज वखते लीधो हशे ? शुं हवे फरीथी निःश्वास लेतो नहीं होय ? अने लेतो हो तो हवे शी वस्तुनी उत्पत्ति थती हो ? परमात्माने तो शरीर विनानो कहेलो छे तो तेणे निःश्वास नाक विना केवी रीते अने क्यांथी मुक्यो हशे ? आ बधी कल्पनाओ योग्य थई होय एम अमोने कांई लागतुं नथी. बाकी तो वाचक वर्गनी ध्यानमां आवे ते खरु.॥
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