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( १२१) जीवके शरीरोंकी जाति । जीते प्राणीके शरीरको मनुष्यके अथवा पशुके रूपको हम जानते हैं परन्तु स्वर्ग अथवा नर्कमें प्राणीके शरीर अत्यन्तसूक्ष्म होते हैं । ऐसा विचारमें आता है, और स्वर्गमें दुःखसे सुखकी मात्रा बहुत अधिक है परन्तु नर्कमें तो दुःख ही दुःख है सुख नामको भी नहीं।
जैनोपदेश। मेरे विचारमें जैनियोंके यहां एकसे दूसरा विशेष उच्च करते करते १६ स्वर्ग (श्वेताम्बरोंके १२ तथा दिगम्बरोंके १६)
और एकसे दूसरा अधिक नीचा करते करते ७ प्रकारके नर्कक उपदेश दिया गया है । तथापि जीवनकी इन चारों स्थितियोंमें जीव शरीरकी शक्ति शद्ध आत्मा नहीं है। उसका कोई न कोई प्रकारका जड़ शरीर होता ही है। स्थूल या सूक्ष्म
पञ्चमी स्थिति। . परन्तु इन चारों जीवनकी स्थितियोंके पश्चात् एक अन्तिम पांचवीं विशुद्धतम शरीररहित स्थिति है जो यदि एकवार प्राप्त
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