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(६५) पराओ आपी छे ते उपरथी तेओ पोताना मतना इतिहास तरफ पण दुर्लक्ष्य करता नहोता ए चोक्टुं देखाय छे. कदाच ए परंपराओ कल्पित होवी पण संभवनीय छे परन्तु कल्पसूत्रमा तेओए जे गण, शाखा अने गुरुपरंपरानी यादि आपी छे ते जैनोए बनावेली होय एम मानवाने कयां सबल कारणो छे वारु ?, हालना जैनोने कल्पसूत्रमा आपेली यादि शिवाय कई विशेष माहिति नथी, अने माहिती छे एम तेओ कहेता पण नथी. तेओए केवल नामोनी जे एक विस्तृत यादि रक्षण करीने मुकी छे ते उपरथी प्राचीनकालना धर्मपन्थना अनुयायिओनी माहिती होवा तरफ तेओनुं ध्यान हतुं ए निर्विवाद सिद्ध थाय छे.
जैनधर्मना ग्रन्थो वल्लभराजानी कारकीर्दीमां देवर्द्धिगणिसमाश्रमणना परिश्रमथी परिणत अवस्थामां आव्या छे एम घणा खरा पंडितोना मतथी मान्य थयुं छे. देवर्द्धिगणिने पूर्व उपलब्ध यएला जुदा जुदा ग्रन्थोना आधारे सिद्धान्तना ग्रन्थो बनाव्या. हवे जैनग्रन्थो कया कालमां रचाएला होवा जोईए एनी शोध करीशुं. जैनौना सिद्धान्तग्रन्थो पैकी आचारसूत्रनो पहेलो भाग अने सूत्रकृताङ्ग ए भागो अतिशय प्राचीन होवा जोईए. सूत्रकृताङ्गसूत्र वैतालीयछन्दःमां लखाएछं छे. बौद्धोना
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