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. (५३) जनोनी देवविषयक कल्पना, विचारीपुरुषोना मनमां आवी शके तेवी छे. देव ए परमात्मा छे, पण जगत्नो स्रष्टा अने नियंता नथी, पूर्णावस्थाने पोहचेलो-जीवन होइने, अपूर्णावस्थावालानी पेठे, जगत्मां पाछो आववानो अशक्य होवाने लीधे पूज्य अने वंदनीय थयो छे.
आज बाबतमां मने जैनधर्मनो अत्युद्दात्त स्वरूप देखावा लाग्यो छे,
बौधिकविषयोनी उत्तम परिपुष्टि करवाने माटे तेटलाज उच्चतम ध्येयने ( देवनी मूर्तिने ) जनधर्मवालाए हाथे धर्यों छे. ___ आ बधां कारणोने लीधे जैनधर्मने आर्यधर्मनीन नहीं, पण एकंदर सर्वधर्मोनी परम मर्यादावालो समजीए तो पण कोई प्रकारनी हरकत आवे तेम नथी. आ परम सीमावाला जैनधर्मने मोठे महत्व प्राप्त थएवं छे. धर्मनी सरखामणीना विज्ञानमां जैनधर्मवालाने एटलुंज एक महत्व नथी परंतु जैनोनुं१ तत्त्वज्ञान, २ नीतिज्ञान, अने ३ तर्कविद्या, पण तेटलांज महत्ववाला छे.
अहिं जैनोना नीतिशास्त्रनी-बेज वातानो उल्लेख करुं छु. तेमां पेहली ए छे के-जगत्मांना सर्व प्राणीओने सुख समाधानथी
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