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________________ (१७७) लोकमां ब्रह्मा १ विष्णु २ अने महेश ३ पणाना स्वरूपने धारण करीने रही छे. एवो ते एकन जिनेन्द्र परमात्मा अमारा कल्याणने माटे याओ ॥ १२ ॥ त्रिकालत्रिलोकत्रिशक्तित्रिसन्ध्य त्रिवर्गत्रिदेवत्रिरत्नादिभावैः। यदुक्ता त्रिपद्येव विश्वानि वने स एकः परात्मा गतिम जिनेन्द्रः ॥ १३ ॥ भावार्थ-जेमनी कहेली उत्पाद १ व्यय २ ध्रौव्य ३ रूपी त्रिपदी- भूत १ भविष्य २ अने ३ वर्तमान काळथी । स्वर्ग १ मृत्यु २ अने ३ पातालना लोकथी । प्रमुत्त्व १ उत्साह २ अने ३ मंत्रनी शक्तिथी। प्रातः १ मध्यान्ह २ अने ३ सन्ध्याना रूपथी। धर्म १ अर्थ २ अने ३ काम ए त्रण वर्गथी ब्रह्मा १ विष्णु २ अने शिव ३ ए त्रण देवथी । ज्ञान १ दर्शन २ अने चारित्र ३ ए त्रण रत्नथी। ए आदि अनेक भावोथी सारा जगत्मा व्यापी रहेली छे एवो ते एकज जिनेन्द्र परमात्मा अमारा कल्याणने माटे याओ ॥ १३ ॥ यदाज्ञा त्रिपद्येव मान्या ततोऽसौ तदस्त्येव नो वस्तु यनाधितष्ठौ । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.005250
Book TitleJainetar Drushtie Jain
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarvijay
PublisherDahyabhai Dalpatbhai
Publication Year1923
Total Pages408
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size13 MB
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