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यज्ञज वेदमां स्पष्ट कहेलो छे, अने शुनःशेफादि वृत्तांतो पण ए वातनी साक्षी आपे छे. वळी आ रक्तश्रावमां आनंद मानवा उपरांत सोमपानथी अने छेवटना वखतमां तो सुरापानथी पण reat मत्त यता मालम पडे छे. परमभावनाना अग्रणीपदने पामेला ऋषिओमां आवो संप्रदाय जणाय ए अलबत आश्चर्य पेदा करवावाकुं छे. ने यद्यपि थोडाज वखत सुधी ए रिवाज बंध यतां पशुने छोडी मुकवानो के पिष्टपशु करवानो रीवाज आपणी नजरे पडे छे".
पुनः सिद्धांतसार पृ. ७३ मां – “ विवाह संबंधे मधुपर्कनी यात जरा कही लेवा जेवी छे. एवो धर्माचार छे के आवेला अतिथिने माटे मधुपर्क करवो जोईए. वर पण अतिथिज छे असल जेम यज्ञने माटे गोवध विहित हतो तेम मधुपर्क माटे पण गाय के बलदनो वध विहित हतो. मांस विना मधुपर्क नहि एम अश्वलायन सूत्र कहे छे, ने नाटकादिकोथी जणाय छे के सारा महर्षिओ माटे पण मधुपर्कमां गोवध करेलो छे. आश्चर्यनी वात छे के जे गाय आजे बहु पवित्र गणाय छे तेने प्राचीन समयमा यज्ञ माटे तथा मधुपर्क माटे मारवानो रीवाज हतो ? हाल तो मधुपर्कमा फक्त दहीं मध अने वीज वपराय छे "
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