________________
श्रीः । श्रीहेमचन्द्राचार्यजीना एक बे काव्यनो
विशेषार्थ.
प्रथम पृ. १२४ मां हेमचंद्राचार्यनी बत्रीशीमांना दशमा काव्यमा एम कयूं हतुं के
हिंसाद्यऽसत्कर्मपथोपदेशात्-आ पदनो अर्थ एटलोन के वेदादिक शास्त्रमा हिंसादिकनु कथन होवाथी ते शास्त्रो सत्पुरुषोने सर्वप्रकारयी मान्य थयेलां नथी ते वात-वा० न० उपाध्येना पहलाज लेखथी सिद्ध थएली छे तोपण द्विवेदी मणिलाल नभुभाईना लेखथी स्पष्ट करीने बतावीए छीए. जूवो सिद्धांतसार पृ. ४३ मां लख्यु छे के---- ..." यज्ञो संबंधे एक बात बहु मुख्य रीते विचारवा जेवी छे. घणा खरा मोटा यज्ञोमां एक बेथी सो सो सुधी पशु मारवानो संप्रदाय पडेलो नजरे पडे छे. बकरां, घोडा, इत्यादि पशुमात्रनो बलि अपातो एटलुन नहिं पण आपणने आश्चर्य लागे छे के माणसोनो पण भोग आपवामां आवतो ! पुरुषमेघ ए नामनो
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org