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( २९) आपणी प्रस्तुत चर्चा जे आ स्थले समाप्त थाय ढ़े ते उपरथी हुं धारूं छु के आटली बाबतो प्रकट रीते सिद्ध बंध त्छे
जैनधर्मनी उत्क्रांति (प्रगति कोई एण समये कोई पण) अत्यत असाधारण एवा बनावोथी जबरदस्त अटकाव पामेली नथी. बीजू ए के आपणे आ उक्रांतिनी शरुआतनी अवस्था उपरांत तेती सबळी विविध अवस्थाओनो पत्तो मेळवी शकीए छीए, अने त्रीजु ए के जैनधर्म ए निर्विवादरीते स्वतंत्र मनाता एवा कोई पण धर्मनी माफक स्वतंत्ररीते उत्पन्न थएलो छे-परन्तु कोई अन्यधर्म अने खास करीने बौद्धधर्मनी शाखारूपे बिलकुल प्रवर्तलो नथी. आ विषयनी विशेष विगतोना संशोधननु कार्य भावि शोधखोळ उपर निर्भर छे तेम छतां मने आशा छे, के हुं जैनधर्मनी स्वतंत्रताना संबंधमां तथा तेना पवित्रग्रन्थो ( आगमो) ने, ते धर्मना प्राचीन इतिहासने प्रकट करवामां केटलाक लेखी साधनोरूपे स्वीकारवाना विषयमां, अत्यार सुधी जे केटलाक विद्वानोना मनमां अमुक संदेहो स्थान पामी रह्या छे, तेने दूर करवा सफल थयो छु.
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