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( १२४) थे और जब तक आप सर्वज्ञ नहीं हुए थे तब तक उपदेश करना नहीं प्रारम्भ किया था ( इस प्रकार अर्थात् जैनी एक सर्वज्ञ महात्माके उपदेशको मानने वाले हैं तथा उनके ही अनुगामी हैं ऐसी परम्परा है ) जिस भांति वाइबिल ख्रीष्टके उपदेशोंका संग्रह है उसी भांति जैनशास्त्र महावीरके उपदेशोंका भण्डार है।
जिनदेवके लक्षण। देव अर्थात् धर्मनियंताके कैसे लक्षण होने चाहिये इस विषयमें जैनियोंका दृढ़ विश्वास है कि धर्मनेता ( Religions lender ) सर्वज्ञ होना चाहिये अन्यथा वह लोगोंके जीवनके लिये धर्मशास्त्र तथा नियम ( Code of rules of ) बनाने
योग्य नहीं है, यह बात भली भांति प्रगट है क्योंकि यदि -सर्वज्ञ न हो तो कुछ ऐसा होगा जो कुछ कम जाने और जिस वार्ताको वह न जाने उसको करने या न करने की शिक्षा हमको दें तो सम्भव है कि हम लोग उसकी सीख कर उनसे ' अधिक रूपमें उस कार्यको करने योग्य होजाय ।
... और उसको निद्रा भी न आनी चाहिये ताकि उसके जानकी सर्वज्ञतामें कोई भी प्रकारका Discontinuity विक्षेप
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