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(९९) सकते हैं । इसी रीति पर कोई आत्माको ज्ञानस्वरूप कहते हैं,
और कोई ज्ञानाधारस्वरूप बोलते हैं, तो बस अब कहनाही क्या अनेकान्तवादने पद पाया। इसी रीति पर कोई ज्ञानको द्रव्यस्वरूप मानते हैं, और कोई वादी गुणस्वरूप । इसी रीति पर कोई जगतको भावस्वरूप कहते हैं और कोई शून्यस्वरूप. तब तो अनेकान्तवाद अनायास सिद्ध हो गया । ___कोई कहते हैं कि घटादि द्रव्य हैं, और उनमें रूपस्पधादि-गुण हैं । परंतु दूसरी तरफ के वादी कहते हैं कि द्रव्य कोई चीज नहीं है, वह तो गुणसमुदायस्वरूप है । रूप, स्पर्श, संख्या, परिमाण इत्यादिका समुदाय ही तो घट है, इसे छोड़ कर घट कौन वस्तु है । कोई कहते हैं आकाशनामक शब्दजनक एक निरवयव द्रव्य है। परंतु अन्य वादी कहते हैं कि वह तो शून्य है।
सजनों ! कहाँ तक कहा जाय कुछ वादियोंका कहना है कि गुरुत्व गुण है । परंतु दूसरी तरफ वादी लोगोंका कहना है कि गुरुत्व कोई चीज नहीं है, पृथ्वीमें जो आकर्षण शक्ति है उसे न जान कर लोगोंने गुरुत्व नामक गुण मान लिया है।
मित हित वाक्य पथ्य है, उसीसे ज्ञान होता है वाग्जाल- -
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