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का कोई प्रयोजन नहीं है, इस हेतु यह विषय यहाँही छोड़ दिया जाता है और आशा की जाती है कि जैनमतके क्रमिक व्याख्यान दिये जायेंगे।
__ शुभानि भूयासुवर्द्धमानानि ।
शम्
पक्षपातो न मे वीरे न द्वेषः कपिलादिषु ।
युक्तिमद्वचनं यस्य । तस्य कार्यः परिग्रहः ॥
श्रीहरिभद्रसूरिः
स्वामी राममिश्र शास्त्री अगस्त्याश्रमाश्रम
काशी. मि० पौषशुक्ल प्रतिपत्
बुधवार सं० १९६२
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