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( १९३) भावार्थ--ब्रह्मकुशल उदासीकृत-ऋगादिभाष्यभूमिकेंदुनाम पुस्तकना भाषार्थनो तात्पय__“ संपूर्ण सृष्टिनी आदिमां जे जल हतुं तेणे गर्भ धारण कर्यो ते एवो के संपूर्ण जगत्ना कारण जे ब्रह्मा जेनामां देवताओ उत्पन्न थई गयेला छे. जन्मादिकथी रहित परमात्मा पोते छे तेनी नाभिमां जे कमल छे तेमां संपूर्ण जगत्ना बीजरूप ब्रह्मा छे जेनामां संपूर्ण चतुर्दश भुवन रहेला छे."
आ उपरनी अतिनो दयानंदसरस्वतीजीए भाषामां करेला अर्थनो तात्पर्य नीचे मुजत्र--- __“ मनुष्योने एवं करवू जोईए के जे जगत्नो आधार. योगी
ओने प्राप्त थवा योग्य अंतर्यामी पोतपोतानो आधार सर्वमा व्याप्त छे तेनी सेवा सर्व लोको करे."
आ एकज वेदनी श्रुतिनो अर्थ बे पंडितोए करेलो छे तार्यमां केटलो तफावत छे ? प्रथमना अर्थमां ब्रह्माने जगत्ना बीज रूपे ठराव्या छे. सरस्वतीजी एक अंतर्यामी कहीने तेमनी सेवा करवान पूर्वाचार्योथी विरुद्ध कहे छे. तो आमां भरोशो कोनो करवो ? इतो व्यान इतस्तटी.
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