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________________ (१८) उस समय जैनियोंने उन हिंसामय यज्ञ यागादिका उच्छेद करना आरंभ किया था. वस तभीसें ब्राह्मणोंके चित्तमें जैनोंके प्रति द्वेष बढने लगा, परंतु फिरभी भागवतादि महापुराणोंमें ऋषभदेवके विषयमें गौरवयुक्त उल्लेख मिल रहा है इत्यादि " ॥ १२ अम्बजाक्ष सरकार एम. ए. बी. एल. लिखित " जैनदर्शन जैनधर्म " जैनहितैषी भाग १२ अंक ९-१० मां छपावेल छे तेमां लख्युं छे के १ “यह अच्छी तरह प्रमाणिक हो चुका है कि जैनधर्म बौद्धधर्मकी शाखा नहीं है. उन्होंने केवल प्राचीनधर्मका प्रचार किया हैं. २ जैनदर्शनमें जीवतत्त्वकी जैसी विस्तृत आलोचना है वैसी और किसीभी दर्शनमें नहीं है इत्यादि." १३ तथा श्रीयुत महामहोपाध्याय डॉक्टर सतीशचन्द्र विद्याभूषण एम. ए. पी. एच. डी. एफ. आई. आर. एस. सिद्धान्तमहोदधि प्रीन्सीपाल संस्कृतकॉलेज कलकत्ता, एमणे ता. २६ डिसम्बर सन् १९१३ काशी ( बनारस ) नगरमां जैनधर्मना विषयमा व्याख्यान आपेल तेमां कहे छे के-“ जैनसाधु........एक प्रशंसनीय जीवन व्यतीत करनेके द्वारा पूर्णरीतिसे Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.005250
Book TitleJainetar Drushtie Jain
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarvijay
PublisherDahyabhai Dalpatbhai
Publication Year1923
Total Pages408
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size13 MB
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